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ख़ुद के साथ नरमी से पेश आएं

ख़ुद के साथ सख़्ती न बरतना और संयम के साथ कोशिशें करना, ख़ुद की देखभाल करना बहुत ज़रूरी है। अक्सर हम अपने और अपनी गतिविधियों के लिए कठोर भाषा का इस्तेमाल करते हैं। अपनी भाषा में सकारात्मक बदलाव लाकर, आप अपनी छवि में निखार लाने के साथ-साथ आपके आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान में सुधार ला सकते हैं।

“मैं हमेशा देर से पहुंचता/पहुंचती हूं”

क्यों?

किसी घटना के साथ ‘हमेशा’ और ‘कभी नहीं’ जैसे शब्दों को जोड़कर उसे सामान्य बनाने से, आपको ऐसी घटनाओं को समझने में मुश्किल हो सकती है, जहां यह बयान काम नहीं करते।

इसके बदले अपनी बात इस अंदाज़ में कहें

“इस बार मुझे पहुंचने में देर हुई, अगली दफ़ा मैं घर से जल्दी निकलूंगा/निकलूंगी.”

“यह मायने नहीं रखता”

क्यों?

अगर आप अपनी जीत के बाद इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, तो आप अपनी ख़ूबियों को कम आंकने लगते हैं। इसलिए, यह ज़रूरी है कि जब भी आपको मौक़ा मिले, आपको अपनी पीठ थपथपा लेनी चाहिए!

इसके बदले अपनी बात इस अंदाज़ में कहें

“मैंने इस बार बेहतर किया”

“मैंने सब गड़बड़ कर दिया। मैं पूरी तरह से विफल हूँ”

क्यों?

जब आप सोचने की सीमा से आगे बढ़ जाते हैं, तो उसे ब्लैक ऐंड व्हाइट थिंकिंग कहते हैं। इसके तहत, आप या तो अच्छा काम करते हैं या बिल्कुल ख़राब करते हैं। इस तरह की सोच रखने वाले लोग , बीच का कोई रास्ता नहीं देख पाते। ऐसे में ज़रूरी है कि आप जो कुछ भी करें उसका आकलन संतुलित तरीके से करें।

इसके बदले अपनी बात इस अंदाज़ में कहें

“इस बार मुझसे अच्छा प्रदर्शन नहीं हो पाया, शायद अगली बार अच्छा कर सकूं”

“मैं शर्मिंदगी महसूस कर रहा/रही हूं. मैं काफ़ी बेवकूफ़ हूं”

क्यों?

हो सकता है कि आप अपने कुछ कामों से शर्मिंदगी महसूस करें, लेकिन ऐसा भी मुमकिन है कि आप जो महसूस करें वो सच न हो। इसलिए, अपने आप को लेबल न करें।

इसके बदले अपनी बात इस अंदाज़ में कहें

“मेरी वर्तमान स्थिति मुझे परिभाषित नहीं करती है।”

कई सालों से चली आ रही आपकी इस तरह की सोच को बदलने में, आपको कुछ समय लग सकता है। अगर आप इन नकारात्मक बातों को अब भी कहते हैं, तो आप सचेत होकर और ध्यान से इन्हें सकारात्मक चीज़ों या बातों से बदलने की कोशिश करें।.